August 4, 2018

Vaccination

टीका करण क्यों और कब  ? Vaccination – Why & when ?

शिशुअवस्था से लेकर व्यसक होने तक संक्रामक रोगो से बचाव का सबसे आसान और सस्ता तरीका है टीकाकरण। साल १९७६ में  चेचक के टीके से प्रथम टीकाकरण की शुरुआत हुयी थी।

टीका क्या होता है और कैसे रोग से बचाव करता है –

जब भी कोई बैक्टीरिया , वायरस या परजीवी (विषाणु) शरीर में प्रवेश करता है तो शरीर उसका प्रतिरोध करता है और उसको नष्ट करने के लिए विषाणु के  अंगो के विरुद्ध एंटीबाडी तैयार करता है। बार बार आक्रमण होने पर शरीर पहले से कई ज्यादा गुडांक मे आक्रमक  के विरुद्ध एंटीबाडी तैयार करता है और उसको नष्ट करने का प्रयास करता है। यह एंटीबाडी विषाणु  की अन्य मिलती जुलती प्रजातियों को भी नष्ट करने की क्षमता रखते हैं।यही आधार है टीके की कार्य प्रणाली का।

आज चिकित्स्क वैज्ञानिको ने ज्यादातर सभी गभींर संक्रामक रोगो के विरुद्ध टीके तैयार कर लिए हैं। यह विषाणु को निष्क्रिय कर या उसके अंग या दृव्य को संरक्षित करके तैयार किये जाते हैं। इंजेक्शन द्वारा इनको शरीर में रोपित किये जाने पर शरीर इनके विरुद्ध एंटीबॉडी तैयार करता है और बार बार निश्चित समय पर रोपित करने पर यह अधिक से अधिक एंटीबाडी तैयार करते हैं और यही एंटीबाडी रोग से लड़ने मैं सहायता करते हैं। कम से कम इंजेक्शन में ज्यादा से ज्यादा टीके लग पाए – इसके लिए कॉम्बिनेशन वैक्सीन बनायी गयी हैं , इनकी कुल कीमत भी कम होती हैं।

कुछ जरूरी टीके और उनके लगाने का समय –

१. हेपेटाइटिस बी – इसको जन्म के तुरंत बाद लगना बहुत जरूरी है, बच्चे चाहे स्वस्थ्य हो या अस्वस्थ्य। उसके बाद ६ सप्ताह और फिर ६ माह की उम्र में। कॉम्बिनेशन वैक्सीन उपलब्ध हो जाने पर इसको जन्म पर अलग और ६ , १० , १४ सप्ताह में कॉम्बिनेशन वैक्सीन के साथ देना उचित रहेगा । अगला टीका १८ माह की उम्र पर अलग या कॉम्बिनेशन वैक्सीन के साथ दिया जा सकता है।

२. बी सी जी – यह टी बी से बचाव के लिए है , इसको  जन्म के तुरंत बाद बायें कंधे के नीचे इंट्राडर्मल (त्वचा की नीचे )दिया जाता है। बच्चा अगर अस्वस्थ्य है तो अस्पताल से छुट्टी होने से पहले ही लगा दिया जाना चाहिए। जन्म के समय अगर ना लग पाए तो जितनी जल्दी हो सके लगवा लेना चाहिए।  

३. पोलियो – यह बहुत जरूरी टीका है। अब यह दो तरह के उपलब्ध है पीन वाली पोलियो ड्राप और इंजेक्शन द्वारा दिए जाने वाला (IPV) . जन्म के बाद पीने  वाली पोलियो ड्रॉप्स तदुपरांत इंजेक्शन के रूप में कॉम्बिनेशन वैक्सीन के साथ ६, १० और १४ सप्ताह पर और बूस्टर १८ माह और फिर ५ वर्ष पर देना चाहिए । देश में पल्स पोलियो प्रोग्राम के अंतर्गत अतिरिक्त खुराख भी अति आवश्यक हैं , पूरे देश के बच्चो को एक साथ पोलियो ड्रॉप्स पिलाने से देश से पोलियो का उन्मूलन हो जाएगा।

४. ट्रिपल एंटीजन – याने तीन बीमारिया काली खांसी , डिप्थेरिया और टिटनेस। ६ , १० और १४ सप्ताह पर।यह दो तरह के होते हैं असेलुलर और होलसेल , पहले वाले में बुखार और दर्द कम होता है परन्तु कीमत थोड़ी ज्यादा। दोनों बराबर के असर दार होते हैं। अब यह हेक्सा वलेंट कॉम्बिनेशन वैक्सीन के रूप में भी उपलब्ध है याने ६ बीमारिया – तीन और शामिल  – एच इन्फ़्लुएन्ज़ा बी , पोलियो और हेपेटाइटिस बी। उपलब्ध होने पर इसका उपयोग ही उचित रहेगा यह असेलुलर है।

५. खसरा , मम्प्स और रूबेला – प्राथमिक दो इंजेक्शन लगते हैं – पहला ९ माह और दूसरा  १५ से १८ माह के बीच और बूस्टर ५ वर्ष पर।

६. टाइफाइड –  इस बीमारी के बचाव के लिए नयी कोंजूगेट वैक्सीन अब उपलब्ध है। यह प्रथम ९ से १२ माह की उम्र के बीच और बूस्टर प्रथम से २ साल के बाद लगाई जाती है। इसका असर लम्बे समय तक रहता है।

७. इन्फ्लुएंजा – इस बीमारी के टीके को सिर्फ स्वास्थ्य की दृष्टि से संवेदनशील बच्चो को ही दिया जाना चाहिए , हमारे देश मैं इसको नियमित टीके की तरह लगाना उचित  नहीं है।

८. हेपेटाइटिस ए – एक साल की उम्र के बाद कभी भी लगाया जा सकता है। इसका Live Attenuated वैक्सीन लगवा लेने से लम्बे समय तक हेपेटाइटिस A याने साधारण प्रचिलित जॉन्डिस से बचा जा सकता है।

९. न्यूमोकोकल वैक्सीन – यह दो तरह के उपलब्ध हैं PCV – १३ और PCV – १० , यह संख्या संकेत देती है के यह टीका कितनी तरह के न्यूमोकोकल बैक्टीरिया के खिलाफ असरदार है।न्यूमोकोकल बैक्टीरिया बच्चो में न्युमोनिया या कान के इन्फेक्शन कर सकता है। देने का समय – ६, १० और १४ सप्ताह की उम्र पर फिर बूस्टर १८ माह पर।

१०. रोटा वायरस – यह तीन तरह के उपलब्ध हैं – RV -१ , RV – ५ और RV – ११६ E ।  RV -१ १० सप्ताह और १४ सप्ताह की उम्र और बाकी दोनों ६, १० और १४ सप्ताह की उम्र में पिलाये जाते हैं। यह टीका डायरिया को कुछ हद तक कम कर सकता है १०० प्रतिशत नहीं।  

११. चिकन पॉक्स – प्रथम इंजेक्शन १२ माह से १८ माह के बीच और दूसरा ४ से ५ वर्ष की उम्र पर। इस वैक्सीन से १०० प्रतिशत बचाव नहीं होता फिर भी व्यापकता काफी कम हो जाती है।

१२. जापानी इन्सेफेलाइटिस –

१३. ह्यूमन पैपिलोमा वायरस वैक्सीन – यह स्त्रियों के जननांगो में वायरस संक्रमित मस्से और सर्वाइकल कैंसर से रोकथम करता है। ९ से १४ वर्ष की उम्र की किशोरियों को २ इंजेक्शन ६ माह के अंतराल में और १५ वर्ष से ऊपर तीन इंजेक्शन लगाए जाते हैं – ६ माह के अंदर।

१४. मेनिंगोकोकल वैक्सीन – यह इस बैक्टीरिया के संक्रमण से होने वाले मष्तिष्क ज्वर की और महा मारी होने पर ही अपने देश में लगाया जाता है। पश्चिमी देशों में यह अनिवार्य है और बाहर से पढ़ने आने वाले बच्चो को अपने देश से लगवा कर आना पड़ता है।

१५. रेबीज – रेबीज एक जान लेवा बीमारी है। इसका टीका दो तरह से दिया जाता है – प्री-एक्सपोज़र याने इस बीमारी के संपर्क में आने से पहले और दूसरा बीमारी के संभावित सम्पर्क में आने के बाद याने जानवर के काटने के बाद।अपने देश में  कुत्ते , गाय ,सांड और अन्य आवारा पशुओ की वजह से मेरा मानना है की हर बच्चे को इसका प्री एक्सपोज़र टीका अवश्य लग जाना चाहिए। घर में पालतू जानवर हों तो परिवार के सभी व्यक्ति लगवा ले तो उचित ही रहेगा।

मलेरिया और डेंगू के विरुद्ध टीके अभी बने नहीं हैं निकट भविष्य में कभी भी यह उपलब्ध हो सकते हैं। शिशुओं को समय से टीका लगवाना बहुत जरूरी है। अपने देश में गन्दगी , प्रदूषण और दूषित पानी के कारण बीमारियों का प्रकोप बहुत ज्यादा है। टीकाकाण के अलावा ज्यादा से ज्यादा समय तक माँ का दूध, स्व्छ्ता का ख्याल और उबला पानी पीने से बीमारियों से काफी हद तक बचा जा सकता है।